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मरकंडेश्वर महादेव मंदिर

मरकंडेश्वर महादेव मंदिर

मारकण्डेय महादेव मंदिर उत्तर प्रदेश के धार्मिक स्थलों में से एक है। विभिन्न प्रकार की परेशानियों से ग्रसित लोग अपनी दुःखों को दूर करने के लिए यहाँ आते हैं। काशीराज दिवोदास की बसाई दूसरी काशी, जो ‘कैथी’ के नाम से वर्तमान समय में प्रचलित है। ऋषि मारकण्डेय शैव-वैशणव एकता के प्रतीक के रूप में प्रसिद्ध हैं। मारकण्डेय महादेव मंदिर के शिवलिंग पर जो बेल पत्र चढ़ाया जाता है, उस पर चन्दन से श्रीराम का नाम लिखा जाता है। मान्यता है कि ‘महाशिवरात्रि’ के दूसरे दिन श्रीराम नाम लिखा बेल पत्र अर्पित करने से पुत्र रत्न की प्राप्ति की मनोकामना पूर्ण होती है।

भारतीय जनमानस को आज भी तीर्थ स्थलों पर सिद्धी और शान्ति प्राप्त होती है। समय-समय पर पृथ्वी पर ऐसे तपस्वी पैदा हुए हैं, जिन्होंने अपने तप के बल पर भाग्य की लेखनी को पलट दिया है। गंगा-गोमती के संगम पर स्थित ‘मारकण्डेय महादेव तीर्थ धाम’ इसकी अनुपम मिशाल है। उत्तर प्रदेश के वाराणसी जनपद मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर गंगा-गोमती के संगम पर चौबेपुर के कैथी ग्राम के उत्तरी सीमा पर बना ‘श्रीमारकण्डेय धाम’ अपार जन आस्था का प्रमुख केन्द्र है। तमाम तरह की परेशानियों से ग्रसित लोग अपने दुःखों को दूर करने के लिए यहाँ आते हैं।

मारकण्डेय महादेव मंदिर का कथा

मृकण्ड ऋषि तथा उनकी पत्नि मरन्धती दोनों पुत्रहीन थे। वे नैमिषारण्य, सीतापुर में तपस्यारत थे। वहाँ बहुत-से ऋषि भी तपस्यारत थे। वे लोग मृकण्ड ऋषि को देख कर अक्सर ताना स्वरूप कहते थे कि- “बिना पुत्रो गति नाश्ति” अर्थात “बिना पुत्र के गति नहीं होती।” मृकण्ड ऋषि को बहुत ग्लानी होती थी। वे पुत्र प्राप्ति की कामना के साथ सीतापुर छोड़कर विंध्याचल चले आये। वहाँ इन्होंने घोर तपस्या प्रारम्भ की। इनकी साधना से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का रास्ता बताया कि हमारी लेखनी को मिटाने वाले सिर्फ एक मात्र भगवान शंकर हैं। आप शंकर जी की उपासना कर उन्हें प्रसन्न करके पुत्र प्राप्त कर सकते हैं। इस बात से प्रसन्न होकर मृकण्ड ऋषि गंगा-गोमती के संगम तपोवन ‘कैथी’ जाकर भगवान शंकर की घोर उपासना में लीन हो गये।

कुछ वर्षों बाद प्रसन्न होकर शंकर जी ने उन्हें दर्शन दिया और वर माँगने के लिए कहा। मृकण्ड ऋषि ने याचना कि- “भगवान मुझे पुत्र रत्न की प्राप्ति हो।” इस पर शिव ने कहा- “तुम्हें अधिक आयु वाले अनेक गुणहीन पुत्र चाहिए या फिर मात्र सोलह वर्ष की आयु वाला एक गुणवान पुत्र।” मुनि ने कहा कि- “प्रभु! मुझे गुणवान पुत्र ही चाहिए।” समय आने पर मुनि के यहाँ मारकण्डेय नामक पुत्र का जन्म हुआ। बालक को मृकण्ड ऋषि ने शिक्षा-दिक्षा के लिए आश्रम भेजा। समय बीतने के साथ बालक की अल्प आयु की चिन्ता मृकण्ड ऋषि को सताने लगी। दोनों दम्पत्ति दुःखी रहने लगे। मारकण्डेय जी को माता-पिता का दुःख न देखा गया। वे कारण जानने के लिए हठ करने लगे। बाल हठ के आगे विवश होकर मृकण्ड ऋषि ने सारा वृत्तांत कह बताया। मारकण्डेय समझ गये कि ब्रह्मा की लेखनी को मिटा कर जब भगवान शंकर के आशिर्वाद से मैं पैदा हुआ हूँ तो इस संकट में भी शंकर जी की ही शरण लेनी चाहिए। मारकण्डेय गंगा-गोमती के संगम पर बैठ कर घनघोर तपस्या में लीन हो गये। शिव पार्थिव वाचन पूजा करते हुए उम्र के बारह साल बीतने को आये। एक दिन यमराज ने बालक मारकण्डेय को लेने के लिए अपने दूत को भेजा। भगवान शंकर की तपस्या में लीन बालक को देख यमराज के दूत का साहस टूट गया। उसने जाकर यमराज को सारा हाल बताया। तब जाकर यमराज स्वयं बालक को लेन भैंसे पर सवार होकर आये। जब यमराज बालक मारकण्डेय को लेने आये, तब वह शंकर जी की तपस्या में लीन था तथा शंकर व पार्वती स्वयं उसकी रक्षा में वहाँ मौजूद थें। बालक मारकण्डेय का ध्यान तोड़ने के लिए यमराज दूर से भय दिखा प्रहार करने लगे। तब मारकण्डेय जी घबरा गये और उनके हाथ से शिवलिंग ज़मीन पर जा गिरा। शिव पार्थिव गिरते ही मृत्यु लोक से अनादि तक शिवलिंग का स्वरूप हो गया। यमराज का त्रास देखकर भगवान शंकर भक्त की रक्षा करने हेतु प्रकट हो गये और मारकण्डेय को यमराज से बचाया और यमराज को सचेत करते हुए कहा कि “चाहे संसार इधर से उधर हो जाए, सूर्य और चन्द्रमा बदल जाए, किन्तु मेरे परम भक्त मारकण्डये का तुम कुछ अनिष्ट नहीं कर सकते। इस बालक की आयु काल की गणना मेरे दिनों से होगी।

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मार्कंडेय महादेव मंदिर

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