दिलवाड़ा जैन मंदिर की वास्तुकला – Architecture of Dilwara Jain Temple
आपको बता दें कि दिलवाड़ा मंदिर वास्तव में पांच समान मंदिरों से बना है, जिनके नाम विमल वसाही, लूना वसाही, पित्तलहार, पार्श्वनाथ और महावीर स्वामी मंदिर हैं
यह मंदिर बाहर से देखने में बेहद साधारण लगता है, लेकिन जब आप इस मंदिर को अंदर से देखेंगे तो इसकी छत, दीवारों, मेहराबों और खंभों पर बने डिजाइनों को देखकर हैरान रह जाएंगे
दिलवाड़ा में स्थित जैन मंदिरों की वास्तुकला नगर शैली से प्रेरित है और इसमें प्राचीन पांडुलिपियों का संग्रह है
इनमें से प्रत्येक मंदिर में एक मंडप, एक गर्भगृह, एक केंद्रीय कक्ष और अंतरतम गर्भगृह है जहां भगवान का निवास माना जाता है.
इन मंदिरों में नवचौकी है जो नौ सजी हुई छतों का समूह है. मंदिरों में उत्तम कारीगरी युक्त भव्य प्रवेश द्वार है.
इस मंदिर में स्थापित आदिनाथ की मूर्ति की आंखें असली हीरे से बनी हैं और उनके गले में बहुमूल्य रत्नों का हार है.
यहां वास्तुकला की सादगी है जो ईमानदारी और मितव्ययिता जैसे जैन मूल्यों को दर्शाती है.
इन मंदिरों में जैन तीर्थंकरों के साथ-साथ हिंदू देवताओं की मूर्तियां भी स्थापित की गई हैं
एक और बात जो इस मंदिर को सबसे खास बनाती है वह यह है कि मंदिर में हर जगह अलग-अलग छत्र, द्वार, तोरण, सभा मंडप स्थापित हैं.
ऐसा माना जाता है कि संगमरमर का काम पूरा करने वाले कारीगरों को संगमरमर की एकत्रित धूल के अनुसार भुगतान किया जाता था, जिससे वे और अधिक अद्वितीय डिजाइन तैयार करते थे.
इन मंदिरों के असाधारण शिल्प कौशल और वास्तुकला की समान रूप से सराहना की जाती है.
यह सब निर्माण ऐसे समय में किया गया था जब माउंट आबू में 1200+ मीटर की ऊंचाई पर कोई परिवहन या सड़क उपलब्ध नहीं थी.
अंबाजी में अरासुर पहाड़ियों से माउंट आबू के इस सुदूर पहाड़ी क्षेत्र में हाथी की पीठ पर संगमरमर के पत्थरों के विशाल ब्लॉक ले जाने का काम किया जाता था.
यह सिर्फ एक तीर्थ स्थल नहीं है बल्कि संगमरमर से बनी एक जादुई संरचना है जो यहां आने वाले पर्यटकों को बार-बार यहां आने पर मजबूर कर देती है.