महामाया मंदिर का इतिहास। History of Mahamaya Temple

रतनपुर के महामाया मंदिर के संबंध में एक विशेष उल्लेख किया मिलता है कि मां महामाया का सिर यहां स्थापित है और माता का धड़ बिकापुर में स्थित हैै। यह कथा एक प्रचलित दंतकथा के अनुसार बताया गया है।

माता के सिर महामाया मंदिर में होने के संबंध में कहा जाता है कि मंदिर के निकट पहाड़ी पर मां महामाया और समलाया देवी की स्थापना की गई है। समलेश्वरी देवी इससे पहले संबलपुर पर स्थापित थी। इस समलेश्वरी देवी को उड़ीसा के संबलपुर में श्रीगढ़ के राजा ने लाया था। ऐसा माना जाता है।

इसके पश्चात मराठा सैनिक द्वारा इन दोनों मूर्तियों को अपने साथ नागपुर ले जाने की कोशिश की गई। एक बार मराठा सैनिकों ने मंदिर पर आक्रमण कर दिया आक्रमण मूर्तियों को ले जाने के लिए किया गया था। जिसके विपक्ष में वहां के दो बैगा ने मूर्ति को बचाना चाहा और एक बैगा ने महामाया माता की मूर्ति और दूसरे बैगा ने समलेश्वरी देवी की मूर्ति को कंधे में लेकर वहां से भाग गए।

सरगुजा से दोनों बैगा ने दोनों मूर्तियों को अपने कंधे में उठाकर  भागना प्रारंभ किया और उसके पीछे मराठा सैनिक पड़ गए। मराठा सैनिकों की टोली में घुड़सवार भी शामिल थे। इसके पश्चात मराठा सैनिकों नेे बैगा के पीछे घुड़सवार को लगा दिया।

जिसके पश्चात इन घुड़सवार ने एक बैगा को महामाया मंदिर स्थल पर और दूसरे बैगा को समलाया मंदिर स्थल पर पकड़ लिया। इसी घटना के पश्चात से ही महामाया मंदिर और समलाया मंदिर के बीच लगभग 1 किलोमीटर की दूरी बनी हैै।

कथा के अनुसार मराठा सैनिक ने इन दोनों मूर्तियों को अपने साथ ले जाना चाहा लेकिन शायद किस्मत ने उनका साथ नहीं दिया और मराठा सैनिक उन दोनों मूर्तियों को अपने साथ ले जाने में असफल रहे।

इसके पश्चात मराठा सैनिकों के मुखिया ने एक सुझाव दिया। मुखिया ने कहा कि अगर इस मूर्ति को अपने साथ ले जाना संभव नहीं है तो इस मूर्ति के सर को काटकर अपने साथ ले जाओ।

इसके पश्चात मराठा सैनिकों ने अपनी मुखिया की बात मान ली और मूर्ति के सर काटकर रतनपुर की ओर आगे बढ़ गए। माता की मूर्ति के सर को काटने से माता नाराज हो गई और इसका प्रकोप सैनिकों को झेलना पड़ा।

कहा जाता है कि दैवीय प्रकोप के कारण एक मील पर रुकते ही सैनिकों में एक सैनिक की मृत्यु हो जाती थी। जब सिर पकड़े हुए सैनिक की मृत्यु हो जाती थी तो सिर को किसी दूसरे सैनिक द्वारा आगे बढ़ाया जाता था। इसके पश्चात अगले मील पर उसकी भी मृत्यु हो जाती थी।

ऐसा कहा जाता है कि रतनपुर तक पहुंचते-पहुंचते पूरे सैनिकों का संहार माता के दैवी प्रकोप के कारण हो गया। रतनपुर के महामाया मंदिर के नीचे देखने पर दो सिर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता हैै।